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राजनीति
क्या एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो चुके हैं अखिलेश-शिवपाल?

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यूपी पर सत्तासीन पार्टी के अंदर कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी के दो दिग्गजों सीएम अखिलेश- कैबिनेट मंत्री शिवपाल के बीच मतभेद गहरे हो चुके हैं। आगामी चुनाव से पहले खुद को मजबूत करने के लिए खींचतान चरम पर है। मथुरा विवाद भी दरअसल इन दो दिग्गजों के बीच असहमति का नतीजा माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि अखिलेश किसी भी सूरत में जवाहर बाग में कार्रवाई चाहते थे और शिवपाल इस कार्रवाई को लेकर अनिच्छुक थे। मथुरा का एक आला अफसर जिनका अब ट्रांसफर हो चुका हैं। उनकी पोस्टिंग भी इस खेमेबाजी का साफ संकेत देती है। मथुरा कांड ने सपा सरकार की भद्द तो पिटाई ही साथ ही सपा कुनबे में सबकुछ ठीक न होने के मजबूत संकेत भी दे गया। सवाल उठता है कि भतीजे अखिलेश को चाचा शिवपाल से इतनी नाराजगी क्यों है और शिवपाल अखिलेश से इतना बिदकते क्यों हैं?

इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए हमें 2011 के नवंबर-दिसंबर महीने के हालात पर गौर करना होगा। तब इसी तरह चुनावी गहमा-गहमी जोर पकड़ रही थी। 5 साल सत्ता से बाहर रह चुके सपाई सत्ता किसी भी सूरत में चाहते थे। खबरें आ रही थीं कि मुलायम की तबीयत सही नहीं है। शिवपाल यादव और आजम खान को जीतने की स्थिति में बड़ी भूमिका की उम्मीद हो चली थी। पर यकायक मुलायम सिंह के तेवर बदले और उन्होंने टिकट बांटने, रैलियां तय करने और चुनावी तैयारियों के मामले में अपने बेटे अखिलेश को आगे कर दिया।

अखिलेश ने सिर्फ प्रचार की कमान ही नहीं संभाली बल्कि टिकटों के बंटवारे में उनका अहम योगदान रहा। इसी दौरान जब बाहुबली डी पी यादव को टिकट देने की बात आई तो ये अखिलेश ही थे जिन्होंने अपने चाचा और पार्टी के अन्य दिग्गजों की राय को दरकिनार कर खुलेआम ऐलान किया कि वो आपराधिक छवि के लोगों को टिकट नहीं देंगे। बेटे अखिलेश को बेहतर रेस्पॉन्स मिलता देख मुलायम ने शिवपाल और आजम की शिकायतों पर चुप्पी साध ली।

akhilesh-shivpal

शिवपाल के लिए यह दोहरा झटका था। एक तो अखिलेश को सपा का यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। दूसरा यूपी चुनाव की पूरी कमान अखिलेश को दे दी गई। ये कसक शिवपाल के बेहद सालती रही। उन्होंने नेता जी के समक्ष कई बार अपनी नाखुशी जताई लेकिन नेताजी उन्हें किसी भी तरह मनाने में कामयाब रहे।

शिवपाल की ये नाराजगी यूं ही नहीं थी। दरअसल मुलायम के कुनबे में यह अनकही समझ बन चुकी थी कि मुलायम सिंह केंद्र की राजनीति देखेंगे जबकि शिवपाल यूपी में जीत पर सीएम पद जैसी बड़ी जिम्मेदारी संभालेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शिवपाल खाली हाथ रह गए। दूसरा उन्हें इस बात से भी असहजता थी कि अखिलेश उम्र में काफी छोटे हैं। मुलायम ने उनकी और आजम की इस आपत्ति को दरकिनार कर अखिलेश को सीएम बना दिया। नई सरकार में अपने से कम उम्र के सीएम के साथ काम करने में शिवपाल और आजम दोनों को हिचक और नाराजगी साफ दिखाई दी लेकिन संतुलन साधने में महारथ रखने वाले मुलायम ने जैसे-तैसे दोनों को मना ही लिया।

शिवपाल मान तो गए लेकिन चाचा-भतीजे के बीच जो अविश्वास की गांठ बंधी वो बढ़ती ही चली गई। पिछले साढ़े चार सालों में ऐसे कई मौके आए जब साफ-साफ लगा कि अखिलेश-शिवपाल के बीच भारी मतभेद हैं।

अमूमन सार्वजनिक मंचों पर अखिलेश और शिवपाल को एक दूसरे से बचते देखा गया। अक्सर जहां चाचा शिवपाल मंच पर होते थे वहां भतीजे अखिलेश जाने से गुरेज करते रहे। ये कुछ महीने पहले की ही बात है। अखिलेश को अलीगढ़ के पास एक पावर प्लांट का उद्घाटन करना था, अखिलेश उसके लिए एक दिन पहले आगरा आकर रुके। मुलायम को भी वहां पहुंचना था। लेकिन अगले दिन अखिलेश को मालूम पड़ा शिवपाल भी वहीं आ रहे हैं तो उन्होंने अलीगढ़ जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और उस दिन आगरा में ही रहकर वापस लखनऊ रवाना हो गए।

इस बीच कुछ घटनाओं ने इनके बीच की दूरियां काफी और बढ़ा दीं। बीते साल शिवपाल ने अखिलेश के तीन करीबियों सुनील यादव, आनंद भदौरिया और सुबोध यादव को पार्टी से निकाल दिया। इस पर बताया जाता है कि अखिलेश अपने पिता मुलायम और चाचा शिवपाल से बेहद नाराज हो गए। नाराजगी इतनी बढ़ी कि वो दिसंबर में शुरू हुए सैफई महोत्व में 18 सालों में पहली बार वह 26 दिसंबर के उद्घाटन समारोह में नहीं गए।

अखिलेश ने शिवपाल पर पलटवार किया और मैनपुरी में हुए पंचायत चुनावों में बूथ पर कब्जा करने के आरोपी राज्यमंत्री तोताराम जो शिवपाल के करीबी माने जाते हैं, को मंच से ही गिरफ्तार करवा दिया।

मुलायम का एक और फैसला इन दोनो के बीच दरार पैदा कर गया। दरअसल 2012 से ही अखिलेश सपा प्रदेश अध्यक्ष भी थे। इसके बावजूद इसी साल अप्रैल में शिवपाल को मुलायम ने प्रदेश प्रभारी बना दिया। इसे सपा कैडर में एक मैसेज ये गया कि अखिलेश के कामकाज से नेताजी नाखुश हैं साथ ही उन्हें आने वाले चुनाव में हारने की आशंका है।

चाचा-भतीजे में शह और मात का ये खेल लगातार जारी है। गौरतलब है कि अखिलेश ही अमर सिंह के सपा में एंट्री के सबसे ज्यादा खिलाफ थे लेकिन उनकी इच्छा को दरकिनार कर शिवपाल ने मुलायम की इच्छा पर पहल करते हुए अमर सिंह से सुलह सफाई की योजना बनाई।

सपा एक बार फिर यूपी के चुनाव के के लिए कमर कस रही है पर ये देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश और शिवपाल मिलकर पार्टी को मजबूती देंगे या फिर ये पार्टी भी खेमेबंदी का शिकार हो जाएगी।

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