राजनीति
अरुणाचल प्रदेश: क्या कांग्रेस की गलतियां दोहरा रही है बीजेपी ?
अरुणाचल प्रदेश: क्या कांग्रेस की गलतियां दोहरा रही है बीजेपी ?
केंद्र सरकार को अरुणाचल प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने नाबाम तुकी की सरकार को हटाने के केंद्र के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है, और उसे तत्काल बहाल करने को कहा है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि अगर घड़ी की सूई को पीछे ले जाना होगा तो ले जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की बीजेपी सरकार के फैसले को पलट दिया है. अरुणाचल प्रदेश की नाबाम तुकी सरकार को हटाने के केंद्र के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए 15 दिसंबर 2015 की स्थिति लागू करने को कहा है. अरुणाचल पर सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला 331 पन्नों का है और इसे पांचों जजों सहमति से लिया गया है.
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम टिप्पणियां की हैं
राज्यपाल संवैधानिक प्रावधानों और विधानसभा के काम-काज के नियमों को दरकिनार कर अपनी मर्ज़ी से काम नहीं कर सकते. राज्यपाल अपनी मर्ज़ी से कभी भी और कहीं भी विधानसभा का सत्र नहीं बुला सकते.
संविधान के तहत राज्यपाल कैबिनेट की सलाह पर काम करता है. लेकिन इस मामले में राज्यपाल ने कैबिनेट की सलाह की उपेक्षा कर अपनी मर्ज़ी से फैसला लिया.
अगर राज्य की परिस्थतियां ऐसी थी जहाँ राज्यपाल को कैबिनेट की सलाह मानना सही नहीं लग रहा था तो उन्हें मामले को राष्ट्रपति तक पहुँचाना चहिए था. लेकिन उन्होंने अकेले फैसला लिया.
अगर राज्यपाल को ऐसा लगता था कि राज्य सरकार के पास विधायकों का समर्थन नहीं है तो वो उसे विधानसभा में बहुमत साबित करने कह सकते थे. लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से विधानसभा का सत्र बुलाकर स्पीकर के खिलाफ प्रस्ताव पर चर्चा को कहा.
फैसले के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इसे लोकतंत्र की जीत बताया है. राहुल गांधी ने ट्वीट किया है, “थैंक्यू सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री को लोकतंत्र समझाने के लिए.” उधर बीजेपी का कहना है कि पार्टी कोर्ट के फैसले का सम्मान करती है.
दरअसल दिसंबर में अरूणाचल प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन गया.. उस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और नबाम तुकी सीएम थे. कांग्रेस के विधायकों के विद्रोह के बाद बीजेपी के समर्थन से बाद में नई सरकार बनी थी.
अरुणाचल विधानसभा की मौजूदा स्थिति के मुताबिक पीपीए के पास 30 विधायक हैं. बीजेपी के पास 11, निर्दलीय के पास दो और कांग्रेस के पास 15 जबकि दो सीटें खाली हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिसंबर 2015 की स्थिति बरकरार की जाए.
कांग्रेस के पास उस वक्त 42 विधायक थे जिनमें से 14 अयोग्य करार दिए गए. इसके बाद दो ने इस्तीफा दे दिया यानि उसके पास बचे 26 विधायक वहीं बीजेपी के पास 11 और पीपीए के पास 5 और 2 निर्दलीय विधायक थे.
यानि अगर बहुमत परीक्षण हुआ तो दिसंबर 2015 की यथा स्थिति होने की वजह से कांग्रेस की सरकार बच जाएगी. क्योंकि 16 विधायकों के कम होने से विधानसभा की कुल संख्या 44 हो जाएगी. यानि बहुमत के लिए कांग्रेस को 23 सीटें चाहिए और उसके पास दिसंबर 2015 की स्थिति के मुताबिक 26 सीटें हैं.
पूर्व सीएम नाबाम तुकी ने कहा, ”देखेंगे कि आगे क्या करना है बहुमत परीक्षण की जरूरत हुई तो उसके लिए भी तैयार हैं.”
मामला इतना सीधा नहीं है. यहां पर एक पेंच हैं कि क्या जो 11 विधायक कांग्रेस का साथ छोड़ कर पीपीए के साथ गए वो वापस कांग्रेस में आएंगे. क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ और कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया तो ऐसे में सरकार बचाना मुश्किल हो जाएगा.
इस हालत में विधानसभा की कुल संख्या 33 की हो जाएगी. बहुमत के लिए 17 सीटों की ज़रूरत होगी लेकिन 11 और विधायकों के अयोग्य होने जाने से कांग्रेस के पास सिर्फ 15 सीटें ही बचेंगी जो कि बहुमत से 2 कम हैं. यानि कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी. हालांकि पार्टी का कहना है कि नाराज़ विधायकों को मना लिया जाएगा.
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