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चिंगारी से शोले में ऐसे बदला मराठा आंदोलन, क्या मुंबई को ठप कर देंगे एक करोड़ मराठे?

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मुंबई। जिनके नाम पर राज्य बना, जिनके नाम के बिना महाराष्ट्र का इतिहास अधूरा है वही मराठा समाज आज सड़कों पर हैं। जिस मराठा समाज ने 17वीं सदी में दिल्ली से लेकर अफगानिस्तान तक भगवा फहराया, वही समाज भगवा लेकर सड़कों पर है। उसे लगता है कि अब सिर्फ उसका नाम बचा है।

लंबे समय बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक गणित बदल चुका है। दिग्गज मराठा नेता हाशिए पर हैं तो राज्य में सत्ता भी अब एक ब्राह्मण चेहरे देवेंद्र फडणवीस के हाथ में है। राज्य में करीब तीस फीसदी आबादी मराठों की है। पिछले तीन साल से सूखे के चलते मराठा किसान परेशान हैं। कर्ज में डूबे हैं और सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भी मराठा किसानों ने की हैं। परंपरागत तौर पर किसान रहने वाले इस समाज को लगता है कि विकास की दौड़ में मराठे पिछड़ गए हैं। यही वजह है कि लंबे समय तक शांत रहे मराठों के गुस्से की चिंगारी भड़क उठी है। शहर दर शहर मराठा समाज मोर्चे निकाल रहा है। इनका न तो कोई एक नेता है, और न ही कोई राजनीतिक मंच। हालांकि हवा का रुख देखकर राजनीतिक पार्टियां और नेता आंदोलन में अपने समर्थकों को भेज रहे हैं।

इस वक्त मराठा समाज की दो बड़ी मांगें हैं। पहली मराठों को आरक्षण दिया जाए और दूसरी दलित अत्याचार निरोधक कानून में बदलाव किया जाए, ताकि किसी निर्दोष को फंसाया न जा सके।

मराठों को लगता है कि आरक्षण मिला तो शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरी का रास्ता निकलेगा। मराठों में बेरोजगारी एक बड़ा मुददा है। सूखे और खेती में बंटवारे के चलते किसान घाटे में हैं। खेती में अब उतनी कमाई नहीं रही। कई जगहों पर किसानों ने कर्ज लेकर बच्चों को निजी कॉलेजों में पढ़ाई के लिए भेजा, लेकिन नौकरियां उन्हें मिली ही नहीं। कर्ज में डूबे मराठा किसानों ने सर्वाधिक आत्महत्याएं की हैं। ऐसे में जाहिर है कि उन्हें आरक्षण ही सबसे आसान रास्ते के तौर पर नजर आ रहा है।

इस बार चिंगारी भड़की औरंगाबाद के कोपर्डी गांव में। यहां एक नाबालिग मराठा लड़की के साथ बलात्कार और हत्या की घटना हुई। इसके पीछे गैर मराठा लोगों का हाथ बताया गया। पुलिस ने शुरुआत में ढिलाई बरती। इससे मराठों को लगा कि उनके खिलाफ दलित अत्याचार का मामला बनता है तो तुरंत कार्रवाई हो जाती है।

शुरुआत में छोटे आंदोलन हुए, पर सोशल मीडिया के जरिये कुछ युवाओं ने बात फैलाई तो गुस्सा बढ़ने लगा। इस घटना को लेकर 9अगस्त को औरंगाबाद में पहला मोर्चा निकला। पहले नेताओं को लगा कि कम लोग आएंगे। ज्यादा से ज्यादा हजार या दो हजार लोग पहुंच जाएंगे, पर सुबह हर घर से बच्चे, बूढ़े, महिलाएं भगवा झंडा लेकर आने लगे और देखते ही देखते भीड़ 5 लाख के आंकड़े तक पहुंच गई। ये देख सबके होश उड़ गए।

इसके बाद भी नेताओं को लगा कि ये एक गुस्सा भर है। इस मामले में सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई। उसके बाद तो ऐसा लगा कि मानो सड़कों पर आंधी आ गई हो। जलगांव, बीड, उस्मानाबाद, लातूर, जालना, नवी मुंबई, सोलापुर, अहमदनगर कोई शहर ऐसा नहीं बचा, जहां लाखों मराठे सड़क पर प्रदर्शन न करने उतरे हों।

पूरे महाराष्ट्र में पहले ये माना जाता रहा कि राज्य भर में करीब 50 ऐसे मजबूत मराठा परिवार हैं जिनके पास खेती से लेकर शक्कर कारखाने और इंजीनियरिंग-मेडिकल कॉलेज हैं। बाकी का पूरा मराठा वोट बैंक उनके हाथ में है। पर इस मराठा आंदोलन ने दिखा दिया कि समाज उठ खड़ा होता है, तो नेता छोटे पड़ जाते हैं।

इस पूरे आंदोलन में आप गुजरात के पटेल आंदोलन और हरियाणा के जाट आंदोलन की झलक देख सकते हैं। जहां कोई बड़ा नेता या नाम नहीं। नेता आ भी रहे हैं तो बस अपनी लाज बचाने, कि कहीं समाज उनसे दूर न हो जाए। हालांकि मराठा क्षत्रप शरद पवार इस आंदोलन को भरपूर समर्थन दे रहे हैं। खुद सामने नहीं हैं, पर जहां भी उनका असर है, वहां के कॉलेज और स्कूल अपनी बसों से आंदोलनकारियों को भेजने में पीछे नहीं हट रहे। कांग्रेस के अशोक चव्हाण, राधाकृष्ण विखे पाटिल, मंत्री चंद्रकांत पाटिल, एजुकेशन किंग पतंगराव कदम सब अपने-अपने इलाकों में मदद कर रहे हैं। जाहिर है, नेता जानते हैं कि अबकी पीछे रहे तो राजनीति खत्म हो जाएगी।

अब आगे की तैयारी मुंबई को मराठों से भर देने की है। दशहरे के बाद कम से कम एक करोड़ मराठों को लाने की कोशिश हो रही है। प्लान ये है कि मुंबई को पूरी तरह ठप कर दिया जाए। उधर सीएम देवेंद्र फडणवीस के हाथ-पांव फूले हैं। सरकार पहले ही मराठों को पांच फीसदी आरक्षण की बात कर चुकी है पर अदालत इसे नकार चुकी है। जाहिर है आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा हो नहीं सकता और अगर ओबीसी आरक्षण में मराठों को हिस्सा दिया गया तो फिर ओबीसी वोट बैंक नाराज हो जाएगा। बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी ही है।

ऐसे में सीएम फडणवीस ने एक नया फार्मूला दिया है कि राज्य में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों की करीब 9000 ही सीटें हैं, जबकि प्राइवेट कॉलेज जो ज्यादातर मराठा चलाते हैं उनमें करीब 1 लाख 30 हजार सीटें हैं। उनमें पहले क्यों नहीं मराठों को सुविधा दे दी जाती। जाहिर तौर पर सीएम एक ऐसा सवाल उठा रहे हैं, जो दुखती रग है। इस आंदोलन के साथ ही ये सवाल भी उठ रहा है कि जब सत्ता में ज्यादातर समय मराठों का राज रहा, महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक कई बड़े मंत्री रहे। बड़े उद्योगों से लेकर को-ऑपरेटिव संस्थाओं तक सब जगह मराठे रहे तो फिर मराठों की हालत पिछड़ी क्यों है? इसकी क्या वजह है कि मराठे पीछे रह गए। जो मराठे कभी राजा थे, अब वो रंक क्यों हैं। क्यों आखिर वो सड़कों पर आने को मजबूर हो गए हैं?