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असम में आज ब्रह्मपुत्र नदी पर बने सवा 9 कि.मी के पुल का उद्घाटन कर तीसरी सालगिरह मनाएंगे मोदी

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आज मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने वाले हैं. इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी देशवासियों को एक ऐसा तोहफा देने जा रहे हैं जो देश ही नहीं पूरे एशिया में चर्चा में है. लोहित नदी पर ढोला और सदिया के बीच पुल बनने से हर दिन पेट्रोल और डीजल में दस लाख रूपये तक की बचत होगी. चीन सीमा के पास देश के सबसे लंबे पुल का आज नरेंद्र मोदी उद्घाटन करेंगे.

सीमेंट और सरिये का बना ये पुल चीन के खिलाफ भारत की सुरक्षा के लिए किसी ढाल से कम नहीं है. चीन की चालाकियों को जवाब देने के लिए एशिया का सबसे लंबा पुल तैयार कर लिया है. इस पुल की मदद से युद्ध की स्थिति में भारत दुश्मन को कड़ा जवाब दे पाएगा.. पुल पर युद्ध से जुड़े टैंक भी चल सकेंगे.

पुल पर टैंक भी चल सकते हैं

इस पुल से 60 टन तक के लड़ाकू टैंक आसानी से ले जाए जा सकते हैं.देश का सबसे आधुनिक टैंक अर्जुन 58 टन वजनी है.टैंक के साथ सैनिकों की टुकड़ियां साजों-सामान के साथ आराम से गुजर सकती हैं.चीन को पस्त करने के लिए अब टी-72 और टी-90 जैसे टैंक कुछ ही देर में बॉर्डर तक पहुंच जाएंगे.

चीन को आंख दिखाने में ये पुल कितना कारगर है

असम की ब्रह्मपुत्र नदी पर तिनसुकिया जिले के सदिया से अरुणाचल प्रदेश के सदिया तक बना पुल असम की राजधानी दिसपुर से 540 किलोमीटर और अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर से 300 किलोमीटर दूर है. ये दोनों राज्यों के बीच की दूरी तो कम करेगा ही, अरुणाचल प्रदेश के अनिनी में बने सामरिक ठिकाने तक आसानी से पहुंचा जा सकेगा. अनिनी चीन की सीमा से सिर्फ 100 किलोमीटर दूर है.

चीन लगातार धमकियां दे रहा है. इस ब्रिज से रोइन जा सकते हैं जो अरुणाचल में पड़ता है उसके आगे चीन. इस पुल के बन जाने के बाद हमारे सैनिक युद्ध की स्थिति में दीमापुर, रांची और पानागढ़ से सीधे कम समय में चीन बॉर्डर तक पहुंच जाएंगे. पहले डिब्रूगढ़ से अनिनी तक पहुचंने में तीन दिन लगते थे अब सिर्फ एक दिन का वक्त लगेगा.

असम और अरुणाचल के बीच दूरी कम करेगा

अब तक असम से अरुणाचल प्रदेश जाने के दूसरे सड़क रास्ते से आठ घंटे लगते थे और नाव से साढ़े चार घंटे का वक्त लगता था. अरुणाचल-चीन बॉर्डर पर किबीथो, वालॉन्ग और चगलागाम तक पहुंचने में भी वक्त बचेगा. 1962 में चीन की लड़ाई अरुणाचल प्रदेश में वालॉन्ग में भी लड़ी गई थी. जानकार बताते हैं कि 1962 की लड़ाई में अगर पुल होता तो सेना आसानी से चीन सीमा तक गोला-बारूद और पहुंचा पाती.

1000 करोड़ की लागत से बना है पुल

इस पुल के बनने की शुरुआत 2011 में हुई थी. 876 करोड़ रुपये इसका बजट रखा गया था. इसे 2015 में पूरा किया जाना था, लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ और बेमौसम बरसात की वजह से प्रोजेक्ट पर साल में सिर्फ 4-5 महीने काम हो पाता था. इसके बावजूद 2017 में पुल बनकर तैयार हो गया है. हालांकि इसकी लागत 1000 करोड़ रुपये हो गई. इस पुल पर गाड़ियां भी 100 किलोमीटर की रफ्तार से चल सकती हैं.

इस पुल को नॉर्थ ईस्ट में चीन का जवाब माना जा रहा है क्योंकि 3888 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा में अरुणाचल प्रदेश में एक भी एयरपोर्ट नहीं है. सिर्फ एक हैलिपैड है जबकि चीन ने कई एयरस्ट्रिप और सड़कें बना ली है. ऐसे में लोगों की सुविधा के साथ सेना के लिए भी अहम है.

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