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बिहार की बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था, सबसे बड़ा सवाल- इतने खर्चे में कैसे हो इलाज
बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य राज्यों की तुलना में सबसे खराब है। इसकी वजह है कि इस मद में सरकार खर्च नहीं करती, जबकि स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक रखना सबसे ज्याादा जरूरी है, जानिए.
पटना [विकाश चन्द्र पाण्डेय]। स्वास्थ्य दिवस के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन का थीम (यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज : एवरी वन, एवरी ह्वेयर) बिहार को खबरदार करने वाला है। एक तो आबादी के अनुपात में डॉक्टरों-अस्पतालों की कमी और उस पर आधुनिक जीवन-शैली के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियां। असल समस्या खर्च की है।
गनीमत यह कि राज्य सरकार स्वास्थ्य मद में तीन फीसद अधिक व्यय की घोषणा कर चुकी है। बावजूद इसके ‘बीमारू’ राज्यों में नागरिकों की सेहत के लिए सबसे कम खर्च बिहार कर रहा। विदित हो कि देश के आर्थिक रूप से पिछड़े चार राज्यों को उनके प्रथमाक्षर के आधार पर बनाया गया है। इन्हें ‘बीमारू’ राज्य कहा जाता है। ये राज्य बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश हैं।
सरकार कर रही कंजूसी
बिहारी व्यक्तिगत रूप से स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करते हैं, जबकि सरकार कुछ कम। नेशनल हेल्थ अकाउंट के मुताबिक स्वास्थ्य पर व्यक्तिगत रूप से सर्वाधिक खर्च (5023 रुपये) केरल वासियों द्वारा किया जा रहा। सरकारी स्तर पर सर्वाधिक खर्च (2016 रुपये) हिमाचल प्रदेश में है।
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बिहार में स्वास्थ्य मद में सरकार द्वारा महज 16.5 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है। शेष 83.5 प्रतिशत खर्च जनता खुद करती है। सरकार और जनता के स्तर पर होने वाले खर्च में यह बड़ा अंतर है। पड़ोसी राज्य झारखंड और पश्चिम बंगाल की सरकारें भी बिहार की तुलना में स्वास्थ्य मद में अधिक खर्च कर रहीं हैं।
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