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दोनों हाथ नहीं पर हौसला पहाड़ सा, इस तरह संभाल रही दिव्यांग बच्चों को
अपनी कमजोरी को देखते हुए उसने अपने तरह के बच्चों की मदद करने की ठानी। अब वह बच्चों की देखरेख के साथ दफ्तर का भी काम संभालती है।
सुरभि अग्रवाल, रांची। एक हाथ न हो तो आदमी खुद को लाचार महसूस करता है मगर लक्ष्मी के तो दोनों हाथ नहीं है। उसने अपनी इस कमजोरी को कमजोरी नहीं बनने दिया। पहाड़ से हौसले के साथ जीवन के सफर पर बढ़ती गई। झारखंड की राजधानी रांची से तकरीबन 25 किमी की दूरी पर बेड़ो प्रखंड के छोटे से गांव टुक्को की रहने वाली लक्ष्मी के हाथ बचपन से नहीं थे। परिवार भी गरीब। घर और बाहर के लोगों की लक्ष्मी से नाउम्मीदी अलग से।
मगर लक्ष्मी अपने हौसले के बूते आगे बढ़ती गई। वह अपने परिवार ही नहीं पूरे गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी है। मनोविज्ञान में स्नातक किया है। अपनी कमजोरी को देखते हुए उसने अपने तरह के बच्चों की मदद करने की ठानी। आज गुरुनानक हैंडीकैप हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रेन में काम करती हैं। यहां तीन सौ बच्चे हैं। बच्चों की देखरेख के साथ दफ्तर का भी काम संभालती है। बिना किसी बाधा के। रसोई के काम में भी उतना ही निपुण। उसके काम की गति देख दूसरे दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।
परिवार ने समझा था बोझ
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