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चे गुवारा एक शख्स, जिसने बदल दी फिदेल कास्त्रो की जिंदगी; बोल्विया में दी गई थी फांसी
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मार्क्सवाद में विश्वास रखने वाले चे गुवारा क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के काफी करीब थे। पेशे से डाक्टर रहे गुवारा की कास्त्रो से पहली बार मुलाकात मैक्सिको में हुई थी। कास्त्रो वहां अपने छोटे भाई राउल के साथ गौरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग लेने के लिए गए थे। दरअसल 1950 में कास्त्रो क्यूबा की तत्कालीन बतिस्ता सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते थे। इसके लिए वह एक असफल प्रयास कर चुके थे। इसके बाद ही उन्होंने सरकार के खिलाफ गौरिल्ला युद्ध छेड़ने का फैसला लिया था। इसके लिए ही वह मैक्सिको गए थे।
गुवारा ने ही दी थी फिदेल को ट्रेनिंग
गुवारा का जन्म अर्जेंटीना के रोसारियो में 14 जून 1928 को हुआ था। मिडिल क्लास परिवार में जन्मे गुवारा ने मेडिसिन की पढ़ाई करने से पहले दक्षिण अमेरिका के कई देशों में भ्रमण किया और वहां के हालातों को बेहद बारीकी से देखा। गुवारा खुद अस्थमा से पीडि़त थे, लेकिन अपनी इच्छा शक्ति और दृढ निश्चय के दम पर उन्होंने अपनी इस बीमारी से पीछा छुड़ाया। इसके लिए उन्होंने अपने को एक एथेलीट की तरह ही ढाला।
कास्त्रो से नजदीकी
इस दौरान कास्त्रो ने उन्हें यह भी बताया कि उनकी एक छोटी टुकड़ी क्यूबा में हर वक्त अपने मिशन के लिए काम करती रहती है। यह वह दौर था जब इन दोनों की सोच एक होने के चलते इनमें न सिर्फ नजदीकी बढ़ी बल्कि आगे चलकर गुवारा कास्त्रो सरकार में प्राइमरी एडवाइजर जैसे अहम पदों पर भी रहे। क्यूबा की बतिस्ता सरकार को उखाड़ फेंकने में उनका योगदान भी कोई कम नहीं था।
गुवारा ने दी सैकड़ों को फांसी
वर्ष 1959 में क्यूबा में सरकार बनने के बाद कास्त्रो ने उन्हें जेल मंत्री बनाया। इस दौरान गुवारा का एक नया चेहरा देखने को मिला। उन्होंने कास्त्रो के मिशन के दौरान पकड़े गए सैकड़ों आरोपियों को बिना मामला चलाए फांसी पर लटकवा दिया। बे ऑफ पिग्स समेत मिसाइल क्राइसिस के वही सही मायने में सूत्रधार भी थे। संयुक्त राष्ट्र में खुलेआम अमेरिकी नीतियों की कड़ी आलोचना की और गौरिल्ला युद्ध को सही बताया।