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मारवाड़ से गौरव यात्रा के दूसरे चरण का आगाज करेंगी राजे, जानें यहां की खासियत
अजेय भूमि मेवाड़ से राजस्थान गौरव यात्रा का आगाज कर चुकीं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, यात्रा का दूसरा चरण 24 अगस्त को मारवाड़ क्षेत्र से शुरू कर रहीं है. मारवाड़ में जनता की नब्ज टटोलने के लिए राजे का चुनावी रथ लगभग 1300 किलोमीटर की दूरी तय करेगा. इस दौरान सीएम राजे 20 बड़ी सभाएं करेंगी, 51 जगहों पर यात्रा का स्वागत होगा. साथ ही जोधपुर संभाग की 33 विधानसभा सीटों में से 32 विधानसभा क्षेत्रों में जाएंगी.
मुख्यमंत्री राजे दूसरे चरण की यात्रा का आगाज जैसलमेर से करेंगी और यात्रा का समापन बाड़मेर, पाली, सिरोही और जालोर होते हुए 2 सितंबर को जोधपुर में होगा.
गौरतलब है कि जोधपुर संभाग की 33 और नागौर की 10 सीटों को मिलाकर मारवाड़ में कुल 43 विधानसभा क्षेत्र है. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मारवाड़ में पिछले चुनाव में भाजपा ने 39 सीट जीत कर कांग्रेस का किला ढहा दिया था. कांग्रेस के खाते में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सीट समेत महज तीन सीटें आईं, जबकि एक सीट पर निर्दलीय ने कब्जा जमाया.
मारवाड़ का इतिहास और भूगोल
मारवाड़, मुगल काल में राजस्थान का एक विस्तृत राज्य था. मारवाड़ को मरुस्थल, मरुभूमि, मरुप्रदेश नामों से भी जाना जाता है. भौगोलिक दृष्टि से मारवाड़ राजस्थान के उत्तर में बीकानेर, पूर्व में जयपुर, किशनगढ़ और अजमेर, दक्षिण-पूर्व में अजमेर व उदयपुर, दक्षिण में सिरोही से पालनपुर व उत्तर-पश्चिम में जैसलमेर से घिरा हुआ है. 13वीं शताब्दी में राठौड़ मारवाड़ प्रांत में आए और अपनी वीरता के कारण उन्होंने यहां अपने राज्य की स्थापना की.
मारवाड़ के राठौड़ों के मूल पुरुष “राव सीहा’ थे, जिन्होंने 1246 के आस-पास मारवाड़ की धरती पर अपना पैर जमाया. इसी वंश में राव रणमल के पुत्र जोधा ने जोधपुर की स्थापना 1459 में की और मंडोर से हटाकर नई राजधानी जोधपुर को बनाया. राव जोधा ने नई राजधानी को सुरक्षित रखने के लिए चिड़ियाटुंक पहाड़ी पर एक नए गढ़ की नींव रखी जिसे मेहरान गढ़ के नाम से जाना जाता है और उसकी तलहटी में जो शहर बसाया उसे जोधपुर के नाम से जाना गया.
जोधपुर पर 1565 में मुगलों का अधिकार हो गया. जोधपुर राज्य के राव चन्द्रसेन ने 1570 में मुगल शासक अकबर से भेंट की, लेकिन अकबर ने उनके प्रतिद्वंदी भाई मोटा राजा उदयसिंह को जोधपुर राज्य का शासक मान लिया. राव चन्द्रसेन निराश लौट गए और जीवनपर्यंत मुगलों का विरोध करता रहे. 1679 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मारवाड़ पर हमला किया इसे लूटा और यहां के निवासियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने को मजबूर किया, लेकिन जोधपुर (मारवाड़), जयपुर और उदयपुर (मेवाड़) की रियासतों ने गठबंधन बनाकर मुगलों के नियंत्रण को रोके रखा.
17वीं सदी में औरंगजेब के साम्राज्य में सख्त नियंत्रण के बावजूद, राठौड़ परिवार की इस क्षेत्र में अर्ध-स्वायत्तता जारी रही. 1830 के दशक तक राज्य पर कोई ब्रिटिश प्रभाव नहीं था. लेकिन इसके पश्चात मान सिंह के समय राज्य सहायक गठबंधन का हिस्सा बना और मारवाड़ (जोधपुर) के राजा देशी रियासत के रूप में शासन करते रहे.
साल 1947 में भारत की आजादी के समय जोधपुर राज्य के अंतिम शासक महाराजा हनवंत सिंह ने भारत में विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने में देरी कर दी. जोधपुर की सीमा पाकिस्तान से लगी होने के कारण यहां के शासक मोहम्मद अली जिन्ना से पाकिस्तान में विलय का संकेत दे चुके थे. लेकिन अंत में वे अपने राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय के लिए सहमत हो गए लेकिन अंतिम समय के नाटकीय घटनाक्रम के बाद.