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पिछले नौ दिनों से भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री की तलाश पूरी नहीं हो पाई है। 10 मार्च को पांच राज्यों के चुनाव के नतीजे आए। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की। तीन राज्यों के मुख्यमंत्री पद के चेहरे भी तय कर दिए, लेकिन उत्तराखंड पर अब तक सस्पेंस बरकरार है। आज पार्टी विधायक मंडल दल की बैठक भी तय कर दी गई।
सियासी हवाओं में सवाल तैर रहा है कि आखिर उत्तराखंड में सीएम चेहरे को लेकर इतनी कश्मकश क्यों है? इस प्रश्न के उत्तर मिलने उम्मीद दिल्ली में दिग्गज नेताओं की बैठक से थी। लेकिन सच यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष बैठकों और मंत्रणाओं में मशगूल हैं।
पहले सीएम पद की दौड़ में शामिल सतपाल महाराज अमित शाह से मिले
कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को केंद्रीय नेतृत्व दो मर्तबा दिल्ली बुला चुका है। शनिवार को भी दोनों नेता बुलाए गए। रविवार को दिग्गज नेता अमित शाह ने बैठक की। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी बैठक में शामिल हुए। इससे पहले सीएम पद की दौड़ में शामिल सतपाल महाराज अमित शाह से मिले।
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शाह की बैठक के बाद डॉ. निशंक के आवास पर राज्य के चारों नेताओं की मन्त्रणा हुई। इन धुंआधार बैठकों के बाद भी भाजपा नेताओं के पास बताने के लिए कुछ ऐसा नहीं था जो सरकार गठन और सीएम चेहरे को लेकर बने सस्पेंस को खत्म कर सके। ये अमित शाह की हिदायत का असर था या संगठन की रणनीति सभी नेताओं ने भी रहस्यमय ढंग से अपने होंठ सी दिए। देर शाम भाजपा हलकों में चर्चा हुई कि अब पीएम नरेंद्र मोदी बैठक ले रहे हैं। लेकिन इस बैठक के बाद भी तय माना जा रहा है कि नए मुखिया का नाम सोमवार को देहरादून में होने वाली विधायक मंडल दल की बैठक में ही खुलेगा।
चयन में जल्दबाजी नहीं करना चाहती भाजपा
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व सीएम और मंत्रिमंडल के गठन में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता। वह तीन तीन मुख्यमंत्री बनाए जाने के अपने फैसले से पहले ही असहज होता रहा है। इसलिए ऐसे नेता के हाथों में कमान सौंपना चाहता है जो पांच साल तक राजकाज चलाने की क्षमता रखता हो।
धामी की पराजय से फंसा पेंच
सियासी जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड में कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने से पेच फंसा। पार्टी ने धामी के चेहरे पर चुनाव लड़ा। 47 सीटें जीतकर दो तिहाई बहुमत हासिल किया। धामी चुनाव जीत जाते तो केंद्रीय नेतृत्व के दुविधा नहीं होती। आज वह भी कश्मकश है कि धामी के चेहरे पर चुनाव जीता तो उनकी अनदेखी कैसे हो?।
केंद्रीय नेताओं की शंका
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ऐसे घोड़े पर दांव नहीं लगाना चाहता जो रेस में पूरी न कर पाए। वह ऐसे चेहरे की खोज में है जो केंद्र और राज्य के बीच सूत्रधार की भूमिका निभा सके।