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Assembly Election Results 2022: “आप” की जीत दे रही नए राजनीतिक युग का संकेत, बहुत कुछ बदलेगा भारतीय राजनीति में

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संप्रेषण, शासन और राशन इसके अलावा नए-नवेले लोगों का ज़मीन पर खुद को साबित करना, यही मूलमंत्र है इस चुनाव का। धराशायी होता विपक्ष न तो अपने चेहरे को बचा पा रहा है, न ही अपनी बात समझा पा रहा है।

पंजाब और उत्तर प्रदेश को अगर सामने रखकर अपनी बात कहें तो मैं यह कह सकता हूं कि अरबिंद केजरीवाल के सामने भी भाजपा उसी चुनौती की तरह है जैसे अन्य के लिए, लेकिन केजरीवाल और उनकी टीम ने जमीन पर उतरकर काम किया और लोगों तक वे पहुंच पाए, नतीजा सामने है।

नई शक्ति के तौर पर उभरती आम आदमी पार्टी

दरअसल, एक तरफ भाजपा पूरे देश के राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ी बनी हई चुनौती है, तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए चुनौती बन रही है। पंजाब में जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस को आप ने चित किया है, वह 70 साल के परिपक्व लोकतंत्र के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।

ऐसा दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी हो चुका है। जब सारा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आंधी में बह चुका था, राजनीति के बड़े-बड़े किले ध्वस्त हो चुके थे और देश में भगवा रंग लहराने लगा था तब केजरीवाल और उनकी पार्टी ने दिल्ली में भाजपा को धूल चटा दी थी।

दूसरी तरफ भाजपा अपने एजेंडे पर हर तरह से कायम है। आज चुनाव परिणाम को मद्देनज़र रखते हुए भाजपा के लिए अगर दो शब्द देने पड़ें तो वह है- राशन और प्रशासन। राशन को सारे देश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। गरीब को मुफ्त राशन किसी अमृत से कम नहीं। राशन और खाताधारकों के खाते में डायरेक्ट पैसे आने से भाजपा का एक शांत मतदाता (साइलेंट वोटर) वर्ग तैयार हुआ है जिसका सिर्फ क़यास लगाया जा सकता है लेकिन उन्हें चिन्हित कर पाना कठिन है।

मोदी-योगी का जलवा और चुनाव 

चुनाव परिणाम बताते हैं कि इस योजना का क्या असर है। दूसरी बात यह है कि नरेन्द्र मोदी की अभेद्य छवि पर 5 साल का योगी प्रशासन। भारतीय लोकतंत्र की उम्र 70 साल से ज्यादा हो चुकी है और जब बहुदलीय शासन प्रणाली ने आकार ले लिया हो और किसी एक दल बहुमत मिलना आसान न हो, ऐसे में केंद्र- राज्य में भाजपा लगातार विजय पर विजय हासिल किए जा रही है तो इसे सिर्फ 70 सालों की ऊब से नहीं मापा जा सकता।
पिछले तीस सालों में उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी ने एक के बाद एक दो बार जीत दर्ज नहीं की है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सालों बाद ऐसा होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव के समीफानल के रूप देखना भी अस्वाभाविक नहीं है। यूपी की जीत से मोदी-योगी ब्रांड और मजबूत होगा।
किसान आंदोलन का कोई फर्क नहीं पड़ा अगर पड़ा भी तो पंजाब में, जिसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी को हुआ। कांग्रेस अपनी विफलता की राह पर जिस तरह से अग्रसर है वह आम आदमी पार्टी के लिए एक स्वर्णिम अवसर है। राजनीतिक पंडित तो आने वाले दस सालों में आप को एक मजबूत विपक्ष के रूप में देख रहे हैं।


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